Sunday, April 4, 2010

ज्ञान स्रोत हिन्दी बने.....................



















चतुर्भुजी माँ ब्राह्मी, वीणा पुस्तक सार |
ज्ञान स्रोत हिन्दी बने, इसका हो व्यवहार ||

ज्ञानदायिनी शारदे, सब हों हिन्दी मीत |
हिन्दी के व्यवहार से, छाये सबमें प्रीति ||

दुर्गम है हिन्दी नहीं, जन जन की आवाज़ |
उर अंतर में ये बसी, अनुशासित अंदाज ||

यति गति लय भी गद्य में, रक्खें इसका ध्यान |
अपनी शैली में लिखें , होगा कार्य महान ||

बोधगम्य हिन्दी लिखें, भरें शब्द भंडार |
छोटे छोटे वाक्य हों , समुचित वर्ण प्रकार ||

सहज सौम्य अनुकूलतम, शब्दों का विन्यास |
मुखरित होयें भाव सब , कर लें यही प्रयास ||

देना होगा ध्यान अब, देखें चिन्ह विराम |
मात्राएँ सब ठीक हों, अवलोकें अभिराम ||

शब्दों की संयोजना , मन में उठते भाव |
हिंदी में अभिव्यंजना , छोड़े अमिट प्रभाव |

हिन्दी में सब काम हो , हिन्दी हो आधार |
मातु करो सब पर कृपा, अपनी ये मनुहार ||

--अम्बरीष श्रीवास्तव

1 comment:

  1. Yah rachna aapko pasand aayee. Apna shram sarthak hua ! Aapka bahut bahut aabhar mitra!

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