Sunday, February 22, 2009

"दिल की चाहत"

 


















इस कदर तुम तो अपने करीब गए ,  
कि तुम से बिछड़ना गवारां नहीं |  
ऐसे बांधा मुझे अपने आगोश में ,  
कि ख़ुद को अभी तक संवारा नहीं ||  

अपनी खुशबू से मदहोश करता मुझे ,  
दूसरा कोई ऐसा नज़ारा नहीं |  
दिल की दुनिया में तुझको लिया है बसा,  
तुम जितना मुझे कोई प्यारा नहीं ||  

दिल पे मरहम हमेशा लगाते रहे ,  
आफतों में भी मुझको पुकारा नहीं |  
अपना सब कुछ तो तुमने है मुझको दिया
  रहा दिल तक तो अब ये हमारा नहीं ||  

मसफ़र तुम हमारे हमेशा बने ,  
इस ज़माने का कोई सहारा नही |
साथ देते रहो तुम मेरा सदा,
मिलता ऐसा जनम फिर दुबारा नहीं ||

--अम्बरीष श्रीवास्तव
 

Friday, February 20, 2009

"निर्माण श्रमिक"



















भूमिहीन है वो बेचारा
या मजदूरी तेरा सहारा
हाड़तोड़ मेहनत वो करता
फिर भी उसका पेट न भरता

रोटी संग नमक और प्याज 
उसकी यही नियति है आज
ये ही है सभी की सोंच,
क्षमता से ज्यादा सिर पर बोझ

प्रायः नहीं काम पर छांव
तसले ढोकर होते घाव 
कार्यस्थल में नहीं सुरक्षा
राम भरोसे उसकी रक्षा

मजदूरी में मिलते धेले 
पेस्टीसाइड तक वो झेले
साँझ को थककर होता चूर
टूटी साइकिल घर है दूर

परिश्रम से जो भवन बनाता 
बाद में उसमें जा ना पाता
उसका नहीं प्रशिक्षण होता 
गुरु शिष्य परम्परा वो ढोता

यही है मजदूरी में खामी
चौराहे पर श्रम की नीलामी
सहन शक्ति की भी है सीमा 
देना होगा उसको बीमा

श्रमिक के लिए यही जरूरी
उसको मिले उचित मजदूरी
यदि वो शिक्षा को अपनाये
शोषित होने से बच जाये

--अम्बरीष श्रीवास्तव