Sunday, October 7, 2012

ग़ज़ल




हर शख्स नारियों पे अभी मेहरबान है
पानी में कितना कौन है नारी को ज्ञान है.

नवजात बाँधे पीठ करे हाड़तोड़ श्रम,
तकदीर से गिला न ये गीता-कुरान है.    

बच्चे को जो कसे था सो अजगर से जा भिड़ी, 
हिम्मत को कर सलाम ये नारी महान है.

झाड़ू व चूल्हे में जुटे कपड़े धुले सभी,
सेवा भी सबकी साथ में क्या शक्तिमान है. 

बोझिल है आँख नींद से भी फिक्र पर सभी,
सोती है घंटे चार ही मुश्किल में जान है.

तारीफ कर चुके है बड़ी अब तो ध्यान दें,
सहयोग चाहती है मगर बेजुबान है.

अबला अगर शरीर से सबला है कर्म से,
'अम्बर' जो हमसफ़र है वही बेईमान है.
--इं० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

Tuesday, October 2, 2012

आप सभी को शास्त्री जयन्ती की बधाई !


 अमर 'शास्त्री'
छंद: कुकुभ
(प्रति पंक्ति ३० मात्रा, १६, १४ पर यति अंत में दो गुरु)
'लाल बहादुर' लाल देश के, काम बड़े छोटी काया,
त्याग तपस्या और सादगी, आभूषण जो अपनाया,
एक रूपया वेतन लेकर, सबक त्याग का सिखलाया,
जय जवान औ जय किसान का, नारा इनसे ही पाया.
होनहार बचपन से ही थे, प्यार करें भगिनी भ्राता,
निर्धनता में तैर-तैर कर, पार करें गंगा माता,
यद्यपि कुल कायस्थ जन्म है, सर्व धर्म शोभा पायी,
काशी विद्यापीठ 'शाऽस्त्री', की उपाधि सबको भायी,
प्रति सप्ताह एक दिन व्रत कर, था अकाल को निपटाया ,
युद्ध हुआ जब दुष्ट पाक को, पटका घर तक पहुँचाया,
संधि हेतु जब गए रूस को, हुई घात बिगड़ी काया,
अमर हो गए ताशकंद में, हम सबका दिल भर आया
जन्मदिवस है आज आपका, इस पर शपथ अभी लेलें,
सारे मिलकर एक बनें औ, कभी आग से मत खेलें,
भेदभाव दुर्भाव भुला कर, विश्व बनाएँ अविनाशी,
कर्मयोग सब जन अपनाएँ, हों सच्चे भारतवासी,
--अम्बरीष श्रीवास्तव

Thursday, September 13, 2012

ग़ज़ल


इन्साफ जो मिल जाय तो दावत की बात कर
मुंसिफ के सामने न रियायत की बात कर

तूने किया है जो भी हमें कुछ गिला नहीं
ऐ यार अब तो दिल से मुहब्बत की बात कर

गर खैर चाहता है तो बच्चों को भी पढ़ा
आलिम के सामने न जहालत की बात कर

अपने ही छोड़ देते तो गैरों से क्या गिला
सब हैं यहाँ ज़हीन सलामत की बात कर

'अम्बर' भी आज प्यार की धरती पे आ बसा
जुल्मो सितम को भूल के जन्नत की बात कर

--अम्बरीष श्रीवास्तव 

'हम नहीं सुधरेंगें' (लघुकथा)



बिरादरी में ऊँची नाक रखने वाले, दौलतमंद, पर स्वभावतः अत्यधिक कंजूस, सुलेमान भाई ने अपने प्लाट पर एक घर बनाने की ठानी| मौका देखकर इस कार्य हेतु उन्होंने, एक परिचित के यहाँ सेवा दे रहे आर्कीटेक्ट से बात की| आर्कीटेक्ट नें उनके परिचित का ख़याल करते हुए, बतौर एडवांस, जब पन्द्रह हजार रूपया जमा कराने की बात कही, तो सुलेमान भाई अकस्मात ही भड़क गए, और बोले, "मैं पूरे काम के, कि

सी भी हालत में, एक हजार से ज्यादह रूपये नहीं दूंगा! यह सुनकर वह आर्कीटेक्ट वापस चले गए| इधर सुलेमान भाई ने भी सस्ते में ही, एक दो मंजिला शानदार घर बनवा डाला| इस बात को एक महीना भी नहीं बीता, तभी किसी व्यापारिक कार्यवश दिल्ली प्रवास के दौरान, सुलेमान भाई को खबर मिली कि, उनके शहर में एक तेज भूकंप आया है| हड़बड़ी में गिरते-पड़ते किसी तरह जब वे अपने घर पहुँचे, तो उन्होंने पाया कि परिचित का घर तो सीना ताने उनके सामने खड़ा था पर, मलवे की शक्ल में तब्दील उनके सपनों का घर, सारे परिवार को स्वयं में दफ़न किये हुए, उनकी कंजूसी को लगातार मुँह चिढ़ा रहा था | यह देखकर वे विक्षिप्त से हो उठे और अपना सिर जमीन पर पटकने लगे |

अकस्मात कन्धे पर किसी का सांत्वना भरा हाथ पाकर, उन्होंने आँसुओं से भरा हुआ स्वयं का चेहरा ऊपर उठाया, तो पाया कि, वही आर्कीटेक्ट, स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से, मलवे से सुरक्षित निकाली हुई, उनकी तीन वर्षीय जीवित पोती को गोद में उठाये हुए, उन्हें सकुशल सौंप रहे थे....... जिसे उन्होंने एकबारगी तो अपने कलेजे से लगा लिया किन्तु अगले ही पल उसे गोद से उतारा और आसमान की तरफ हाथ उठाकर बोले ऐ पाक परवरदिगार! ये क्या किया ! इससे तो अच्छा था मेरे फरीद को बचा लेते ....आखिर मेरा वंश तो चलता !
                                                                 --अम्बरीष श्रीवास्तव