भूमिहीन है वो बेचारा
या मजदूरी तेरा सहारा
हाड़तोड़ मेहनत वो करता
हाड़तोड़ मेहनत वो करता
फिर भी उसका पेट न भरता
रोटी संग नमक और प्याज
रोटी संग नमक और प्याज
उसकी यही नियति है आज
ये ही है सभी की सोंच,
ये ही है सभी की सोंच,
क्षमता से ज्यादा सिर पर बोझ
प्रायः नहीं काम पर छांव
तसले ढोकर होते घाव
कार्यस्थल में नहीं सुरक्षा
राम भरोसे उसकी रक्षा
मजदूरी में मिलते धेले
मजदूरी में मिलते धेले
पेस्टीसाइड तक वो झेले
साँझ को थककर होता चूर
साँझ को थककर होता चूर
टूटी साइकिल घर है दूर
परिश्रम से जो भवन बनाता
परिश्रम से जो भवन बनाता
बाद में उसमें जा ना पाता
उसका नहीं प्रशिक्षण होता
उसका नहीं प्रशिक्षण होता
गुरु शिष्य परम्परा वो ढोता
यही है मजदूरी में खामी
चौराहे पर श्रम की नीलामी
सहन शक्ति की भी है सीमा
सहन शक्ति की भी है सीमा
देना होगा उसको बीमा
श्रमिक के लिए यही जरूरी
उसको मिले उचित मजदूरी
यदि वो शिक्षा को अपनाये
यदि वो शिक्षा को अपनाये
शोषित होने से बच जाये
--अम्बरीष श्रीवास्तव
No comments:
Post a Comment