Monday, May 11, 2009

"गौमाता"















अंग अंग में देवता, बहे दूध की धार ||
वैतरणी दे पार कर, पूजे सब संसार ||


युगों-युगों से गौमाता
हमें आश्रय देते हुए
हमारा लालन-पालन
करती रही है

हमारी जन्मदात्री माँ तो
हमें कुछ ही बरस तक
दूध पिला सकी
परन्तु यह पयस्विनी तो
जन्म से अब तक
हमें पय-पान कराती रही

हमारी इस नश्वर काया
की पुष्टता के पीछे है
उसके चारों थन
जिस बलवान शरीर
पर हमें होता अभिमान
वह विकसित होता
इस गोमाता के समर्पण से

क्योंकि उसने अपने
बछ्ड़े का मोह त्यागकर
ममता से हमें केवल
दूध ही नहीं पिलाया
बल्कि हमें अपनाया भी

वह गोमाता जिसके हर अंग में
बिराजते हैं देवता तैतीस करोड़
जो दिखाती हमें स्वर्ग की राह
जिसकी पूंछ पकड़कर
पार होते हम भवसागर
वह स्वयं में भी है
ममता का अथाह सागर

बदले में हम उसे क्या दे पाए
वही सूखा भूसा
वही सीमित चूनी
हरे चारे के नाम पर सूखी घास
वह तो यह भी सह लेती
यदि हम दे पाते उसे
थोड़ी सी पुचकार थोड़ा प्यार
थोड़ी सी छाँव के साथ
अपना सामीप्य और स्नेह

उसने तो हमें अपना लिया
अपने बछ्ड़े तक उसने किये समर्पित
हमारा बोझ उठाने को
परन्तु क्या हम उसे अपना पाए
जब तक मिला ढूध
उसे तभी तक पाला
और जब सूखा दूध
उसे कौडियों में बेच डाला
और ढूंढने लगे दुधारी गाय

आखिर हमें दुधारी गाय ही
क्यों भाती है
क्या गोबर वरदान नहीं
क्या गोमूत्र अमृत नहीं

वह तो देवी ठहरी
पर हममें से कुछ एक
मानव हैं या दानव
जो मात्र आहार के निमित्त
गाय का वध तक कर देते
और दुहाई देते कुरीतियों की
व्यर्थ तर्क-वितर्क करते

अभी समय है सुधर जाएँ
सम्मान दें गौ-माता को
प्रोत्साहन दें गोपालकों को
यदि हम नहीं चेते समय रहते
तो शायद इतिहास में हम ही ना रहें |


माता वध सम गोकुशी, निंदनीय यह काज |
जग में जो ऐसा करे, उसको त्यागौ आज ||




Thursday, April 2, 2009

"जय-जय राम"


















राम नाम जपते रहें, मूल मंत्र ये नाम|
अंतर में जब राम हों, बन जाएँ सब काम||

मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम,
तेरे चरणों में हैं बसते जग के सारे धाम..............
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२

अयोध्या नगरी में तुम जन्मे , दशरथ पुत्र कहाये,
विश्वामित्र थे गुरु तुम्हारे, कौशल्या के जाये,
ऋषि मुनियों की रक्षा करके तुमने किया है नाम ..........२
तुलसी जैसे भक्त तुम्हारे, बांटें जग में ज्ञान................
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२

मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम..................

सुग्रीव-विभीषण मित्र तुम्हारे, केवट- शबरी साधक,
भ्राता लक्ष्मण संग तुम्हारे, राक्षस सारे बाधक,
बालि-रावण को संहारा, सौंपा अदभुद धाम...........२
जटायु सा भक्त आपका आया रण में काम .................
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२

मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम..................

शिव जी ठहरे तेरे साधक, हनुमत भक्त कहाते,
जिन पर कृपा तुम्हारी होती वो तेरे हो जाते,
सबको अपनी शरण में ले लो दे दो अपना धाम |........२
जग में हम सब चाहें तुझसे, भक्ति का वरदान .................
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२

मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम..................

मोक्ष-वोक्ष कुछ मैं ना माँगूं , कर्मयोग तुम देना,
जब भी जग में मैं गिर जाऊँ मुझको अपना लेना,
कृष्ण और साईं रूप तुम्हारे, करते जग कल्याण ................२
कैसे करुँ वंदना तेरी , दे दो मुझको ज्ञान .....................
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२

मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम..................

जो भी चलता राह तुम्हारी, जग उसका हो जाता,
लव-कुश जैसे पुत्र वो पाए, भरत से मिलते भ्राता,
उसके दिल में तुम बस जाना जो ले-ले तेरा नाम .........२
भक्ति भाव से सेवक सौंपे तुझको अपना प्रणाम ..........
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२
मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम..................

मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम..................
तेरे चरणों में हैं बसते जग के सारे धाम..............
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२

--अम्बरीष श्रीवास्तव "

Friday, March 27, 2009

सरगमीं प्यास को अपनी मैं बुझा लूँ तो चलूँ


 

















सरगमी प्यास को अपनी मैं बुझा लूँ तो चलूँ ,
तुम को दिल में आहिस्ता से सजा लूँ तो चलूँ
......२

भीनी यादों को यूँ संजोया है ,
बीज जन्नत का मैंने बोया है,
मन मेरा बस रहा इन गीतों में ,
ख़ुद को आईना, मैं
दिखा लूँ तो चलूँ ||
सरगमी प्यास को अपनी मैं बुझा लूँ तो चलूँ ........2

दिल की आवाज़ यूँ सहेजी है ,
मस्त मौसम में आंसू छलके हैं ,
गम की बूँदों को रखा सीपी में ,
शब्द मुक्तक मैं उठा लूँ तो चलूँ ||
सरगमी प्यास को अपनी मैं बुझा लूँ तो चलूँ ,
तुम को दिल में आहिस्ता से सजा लूँ तो चलूँ ......२

--अम्बरीष श्रीवास्तव

Thursday, March 5, 2009

"माँ सरस्वती वंदना "






















 हे, ज्ञान की ज्योति, जगाने वाली.......
हे, अमृत रस,
वर्षाने वाली.........
तेरी, महिमा
अपरम्पार,
तुझको, पूज रहा संसार
.........२

हे, ज्ञान की ज्योति, जगाने वाली.......
जो जन तेरी, शरण में आते,
बल बुद्धि विद्या, ज्ञान हैं पाते ..........२
हे मोक्षदायिनी, देवी माता ......२
कर दो बेड़ा पार ...........
तुझको पूज रहा संसार .........२

हे, ज्ञान की ज्योति, जगाने वाली.......

हम पर कृपा बनाये रखना ,
ज्ञान से मन हर्षाये रखना .....२
हे वीणाधारिणी हंसवाहिनी .......२
हर लो, जग का सब अंधकार .......
तुझको पूज रहा संसार ....२

हे, ज्ञान की ज्योति, जगाने वाली.......2

--अम्बरीष श्रीवास्तव

Wednesday, March 4, 2009

"होली के रंग "

हर शख्श पे दिल आए, ये जरूरी तो नहीं |
कुछ एक ही मिलते हैं, दिल से लगाने के लिए ||
 
समस्त मित्रों को हमारी और से गरमागरम गुझिया के साथ होली की बहुत-बहुत बधाई व ढेरों शुभकामनायें !!!......
होली में मन मचलते हैं हसरतें जाग जाती हैं
जगे मन में वही अरमां हवाएं मस्त गाती हैं
यहाँ सब लोग रंगों की खुमारी में मगन होकर
दिलों से दिल मिलाते है फिजायें गुनगुनाती हैं

सुहाने दिन वही बचपन आज फिर याद आता है
वही हाथों में पिचकारी लड़कपन दिल लुभाता है
जमाने भर की खुशियाँ थीं चमकती उन निगाहों में
वही वो प्यार बचपन का हमें नज़दीक लाता है

आज के दिन मेरे यारों कभी मायूस ना होना
सताए दर्द गर कोई कभी ग़मगीन ना होना
चले आना हमारे संग इन्हीं रंगीं फिजाओं में
दिलों को जोड़ते हैं हम खताएं माफ़ कर देना …….
तेरे दीदार को तरसे हैं हम .......
सूरत तो दिखाने जा.......|
कैसे मिलते तुझसे........
रंगों के बहाने जा .......

रंग प्यार के हम सब घोलें........
अपनेपन के हों गुब्बारें ......|
रंगों की तेज धार से........
बह जांय नफरत की दीवारें .....||

ऐसे रंगना हमें........
दुश्मन पे प्यार जाए.......|

भूलकर शिकवे सारे. ......
गले मिल लें बहार आ जाए.....||

--अम्बरीष श्रीवास्तव

Sunday, February 22, 2009

"दिल की चाहत"

 


















इस कदर तुम तो अपने करीब गए ,  
कि तुम से बिछड़ना गवारां नहीं |  
ऐसे बांधा मुझे अपने आगोश में ,  
कि ख़ुद को अभी तक संवारा नहीं ||  

अपनी खुशबू से मदहोश करता मुझे ,  
दूसरा कोई ऐसा नज़ारा नहीं |  
दिल की दुनिया में तुझको लिया है बसा,  
तुम जितना मुझे कोई प्यारा नहीं ||  

दिल पे मरहम हमेशा लगाते रहे ,  
आफतों में भी मुझको पुकारा नहीं |  
अपना सब कुछ तो तुमने है मुझको दिया
  रहा दिल तक तो अब ये हमारा नहीं ||  

मसफ़र तुम हमारे हमेशा बने ,  
इस ज़माने का कोई सहारा नही |
साथ देते रहो तुम मेरा सदा,
मिलता ऐसा जनम फिर दुबारा नहीं ||

--अम्बरीष श्रीवास्तव
 

Friday, February 20, 2009

"निर्माण श्रमिक"



















भूमिहीन है वो बेचारा
या मजदूरी तेरा सहारा
हाड़तोड़ मेहनत वो करता
फिर भी उसका पेट न भरता

रोटी संग नमक और प्याज 
उसकी यही नियति है आज
ये ही है सभी की सोंच,
क्षमता से ज्यादा सिर पर बोझ

प्रायः नहीं काम पर छांव
तसले ढोकर होते घाव 
कार्यस्थल में नहीं सुरक्षा
राम भरोसे उसकी रक्षा

मजदूरी में मिलते धेले 
पेस्टीसाइड तक वो झेले
साँझ को थककर होता चूर
टूटी साइकिल घर है दूर

परिश्रम से जो भवन बनाता 
बाद में उसमें जा ना पाता
उसका नहीं प्रशिक्षण होता 
गुरु शिष्य परम्परा वो ढोता

यही है मजदूरी में खामी
चौराहे पर श्रम की नीलामी
सहन शक्ति की भी है सीमा 
देना होगा उसको बीमा

श्रमिक के लिए यही जरूरी
उसको मिले उचित मजदूरी
यदि वो शिक्षा को अपनाये
शोषित होने से बच जाये

--अम्बरीष श्रीवास्तव

Thursday, January 29, 2009

"माँ"



















अपने रक्त से सिंचित करके माँ नें हमको जनम दिया 
गर्भावस्था से ही उसने संस्कारों का आधार दिया 
सर्वप्रथम जब आँख खुली तो मुख पे माँ ही स्वर आया 
दुनिया में किस बात का डर जब सिर पर हो माँ का साया

पहला स्वर सुनते ही उसने छाती से अमृत डाला
अपने वक्षस्थल में रखकर ममता से उसने पाला 
प्रथम गुरु है माँ ही अपनी उससे पहला ज्ञान मिला
माँ का रूप है सबसे प्यारा सबसे उसको मान मिला 

नारी के तो रूप अनेकों भगिनी रूप में वो भाती 
संगिनी रूप में साथ निभाकर मातृत्व से सम्पूर्णता पाती 
अपरम्पार है माँ की महिमा त्याग की मूरत वो कहलाती 
उसके कर्म से प्रेरित होकर मातृ-भूमि पूजी जाती 

माँ में ही नवदुर्गा बसती माता ही है कल्याणी 
माँ ही अपनी मुक्तिदायिनी माँ का नाम जपें सब प्राणी 
माँ के चरणों में स्वर्ग है बसता करते सब तेरा वंदन
तेरा कर्जा कभी न उतरे तुझको कोटिश अभिनन्दन |
 
--अम्बरीष श्रीवास्तव

Tuesday, January 27, 2009

संक्षिप्त जीवन-वृत्त अम्बरीष श्रीवास्तव "वास्तुशिल्प अभियंता" व मूल्यांकक

जीवन लक्ष्य : अपने आचरण व क्रियाकलापों के माध्यम से जन मानस में समयानुकूल स्वस्थ विचारयुक्त प्रवृत्ति विकसित कराने में सहयोग देना ताकि समाज में स्वस्थ परम्पराओंयुक्त वातावरण सृजित किया जा सके और हम अपने राष्ट्र को स्थिरता सहित हर प्रकार की सम्पन्नता देने में सहयोग कर सकें|

व्यावसायिक जीवन लक्ष्य : अपने तकनीकी व्यवसाय व् भूकंपरोधी डिजाईन से सम्बंधित महत्वपूर्ण सूचनायें व बारीकियाँ, श्रमिकों, अभियंताओं, वास्तुविदों, व भवन डिजाईनरों आदि के साथ -साथ जनसामान्य को उपलब्ध कराते हुए इसे व्यवहार में लेने हेतु प्रोत्साहित करना ताकि आपदाओं के समय क्षति की मात्रा को न्यूनतम किया जा सके |


जन्म तिथि : ३०-०६-१९६५ ( तीस जून सन् उन्नीस सौ पैसठ ई०)
राष्ट्रीयता : भारतीय
स्थाई पता :
अम्बरीष श्रीवास्तव "वास्तुशिल्प अभियंता"
91/
९१, आगा कालोनी, सिविल लाइंस सीतापुर २६१००१ , उत्तर प्रदेश , इंडिया ( भारतवर्ष )
मोबाइल : +९१९४१५०४७०२० +919415047020
ईमेल: ambarishji@gmail.com
फ़ोन नम्बर : +९१ ५८६२ २४४४४०
वेब साईट : www. ambarishsrivastava.com
हिन्दी कविताओं हेतु वेब साईट : http://hindimekavita.blogspot.com
शैक्षिक योग्यता : स्नातक
तकनीकी योग्यता : D. C. E. , A. M. ASCE (USA), A. M. AEI. (USA), A. M. SEI. (USA), COURSE ON SEISMIC DESIGN OF STEEL STRUCTURES (IIT-KANPUR), SEISMIC DESIGN OF BRIDGES (IIT-KANPUR), SEISMIC EVALUTION AND STRENGTHENING OF BUILDINGS (IIT-KANPUR), SEISMIC DESIGN OF MASONRY BUILDINGS (IIT-KANPUR)

सदस्यता :
१. एसोशियेट सदस्य अमेरिकन सोसायटी आफ सिविल इंजीनियर्स ( यू ० एस ० ए ० )
२। आजीवन फेलो सदस्य भारतीय पुल अभियंता संस्थान
३। आजीवन सदस्य भारतीय भवन कांग्रेस
४। आजीवन सदस्य भारतीय सड़क कांग्रेस
५। आजीवन सदस्य भारतीय तकनीकी शिक्षा समिति
६। आजीवन सदस्य भारतीय गुणवत्ता वृत्त फॉरम
७। आजीवन फेलो सदस्य भारतीय भवन निर्माण अभिकल्पक संघ संस्थान
८ । सदस्य भारतीय उद्योग संस्थान
९ । सदस्य भारतीय मानवाधिकार संघ
१० । एसोशियेट सदस्य आर्किटेक्चरल इंजीनियरिंग संस्थान ( यू ० एस ० ए ० )
११ । एसोशियेट सदस्य संरचनात्मक इंजीनियरिंग संस्थान ( यू ० एस ० ए ० )

मूल्यांकक के रूप में सूचीबद्धता :
१। इलाहाबाद बैंक
२। लखनऊ क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
३। यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी
४। ओरिएण्टल इंश्योरेंस कंपनी


तकनीकी कार्य अनुभव : लगभग २४ वर्ष,
सीतापुर में कराये गए प्रमुख कार्य जैसे रीजेंसी डिग्री कालेज, विजयलक्ष्मी नगर में कैलाश महावर का निवास ,
सिविल लाइंस में डा० जी० एल० दीक्षित के निकट अवधेश वर्मा का निवास, मोहल्ला कोट में मुनिसिपल इंटर कॉलेज के पास अनीस मिर्जा का निवास व डा० समीर अग्रवाल के पीछे अग्रवाल कालोनी में अनूप अग्रवाल व संदीप अग्रवाल का निवास आदि।

अन्य सामाजिक कार्य : इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ बिल्डिंग डिजाईनर्स एशोसिएशन का गठन , निर्माण श्रमिक संघ सीतापुर का गठन, निर्माण श्रमिकों का प्रशिक्षण, सीतापुर में वर्ष २००८ में बाढ़-आपदा के समय पीडितों की सहायता हेतु ए सी सी सीमेंट लिमिटेड व अन्य मल्टीनेशनल कंपनियों को प्रेरित किया तथा स्वयं यथासंभव सहायता की | मोहल्ला आगा कालोनी में युवकों के सहयोग से बुजुर्गों के सम्मान समारोह, भूतपूर्व सैनिकों के सम्मान समारोह तथा विवेकानंद पब्लिक स्कूल आगा कालोनी में शिक्षकों तथा कवियों के सम्मान समारोह का सफल आयोजन कराया |

नेतृत्व सम्बन्धी क्षमतायें :
१। अध्यक्ष भारतीय भवन निर्माण अभिकल्पक संघ संस्थान भारतवर्ष |
२। वरिष्ठ उपाध्यक्ष कायस्थ जाग्रति महासभा सीतापुर |
३| जिलाध्यक्ष ग्रामीण अभियंता संघ सीतापुर |

साहित्यिक रूचि: हिन्दी कविता सृजन तथा प्रारंभिक स्तर पर बांसुरी वादन आदि |

प्राप्त अवार्ड सम्मान :
१। राष्ट्रीय अवार्ड इंदिरा गाँधी प्रियदर्शनी अवार्ड (स्वयं के वास्तुशिल्प अभियंत्रण कार्य क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवा योगदान, व प्राप्त उपलब्धियों हेतु )
२। भारतीय मानवाधिकार संघ द्वारा "अभियंत्रण श्री" से अलंकृत |
३। विवेकानंद सेवा संस्थान सीतापुर द्वारा " काव्य श्री " सारस्वत सम्मान से विभूषित |
४। सीतापुर जेसीज द्वारा हिन्दी हस्तलेख प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त |
५। जे पी सीमेंट लिमिटेड द्वारा सीतापुर में आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में सम्मानित |
६। ए सी सी सीमेंट लिमिटेड व अन्य मल्टीनेशनल कंपनियों द्वारा अनेक बार सम्मानित | 
हिन्दी साहित्य परिषद् द्वारा "सरस्वती-रत्न" से सम्मानित |

हम शपथ लेते हैं कि हम भारत गणतंत्र में निरंतर आस्था रखते हुए संपूर्ण आत्मविश्वास से भारत की एकता, अखंडता, सृजनात्मकता और गौरव को निरंतर बनाये रखेंगें | हम स्वयं को छल, दंभ द्वेष, अंहकार व स्वार्थपरता से सदैव दूर रखकर अपने राष्ट्र के संपूर्ण विकास व उत्थान में सदैव सहयोग देते रहेंगे | हम इसे अपनी सृजन क्षमता का पूरा उपयोग करके अत्यन्त गौरवशाली महाशक्ति बनायेंगे |
अम्बरीष श्रीवास्तव "वास्तुशिल्प अभियंता"





Monday, January 26, 2009

"हिन्दी महिमा"







सोने जैसी खरी है हिन्दी,
चाँदी जैसी उज्जवल हिन्दी,
गंगा जैसी निर्मल हिन्दी,
माटी की सुगंध है हिन्दी,

ममता का आँचल है हिन्दी,
करुणा का सागर है हिन्दी,
ब्रह्मा का वरदान है हिन्दी,
सरस्वती का सम्मान है हिन्दी,

उर्दू की भगिनी है हिन्दी,
मराठी की संगिनी है हिन्दी,
गुजराती में गौरव हिन्दी,
पञ्जाबी की प्रीति है हिन्दी,

कर्मयोग का सार है हिन्दी,
संस्कृत का अवतार है हिन्दी,
वेद पुराणों का ज्ञान है हिन्दी,
अपनों की पहचान है हिन्दी,

हिन्दी सरल बनानी होगी,
जन जन तक पहुंचानी होगी,
अंग्रेजी से हाथ मिलाकर ,
ज्ञान की ज्योंति जलानी होगी|

--अम्बरीष श्रीवास्तव

Sunday, January 25, 2009

अम्बरीष श्रीवास्तव की कविताएँ


"बचपन के दिन"

टिमटिम तारे, चंदा मामा,
माँ की थपकी मीठी लोरी|
सोंधी मिटटी, चिडियों की बोली,
लगती प्यारी माँ से चोरी ||

सुबह की
ओस सावन के झूले,
खिलती धूप में तितली पकड़ना|
माँ की घुड़की पिता का प्यार,
रोते रोते हँसने
लगना ||

पल में रूठे, पल में हँसते ,
अपने आप से बातें करना |
खेल खिलौने साथी संगी ,
इन सबसे पल भर में झगड़ना ||

लगता है वो प्यारा बचपन ,
शायद लौट के ना आए |
जहाँ उसे छोड़ा था हमने ,
वहीं पे हमको मिल जाए ||

रचयिता ,
अम्बरीष श्रीवास्तव "वास्तुशिल्प अभियंता"
91/
९१, सिविल लाइंस सीतापुर , उत्तर प्रदेश , इंडिया ( भारतवर्ष )
मोबाइल : +९१९४१५०४७०२०

+919415047020
ईमेल: ambarishji@gmail.com




Saturday, January 24, 2009

अम्बरीष श्रीवास्तव की कविताएँ


"कविता"

अभावों में बीता हो शैशव,
बचपन भी हो द्वंद भरा |
युवावस्था संघर्ष भरी हो ,
कविता उपजे उसी धरा ||


व्यंग्य ओज अलंकार हैं इसके,
अंतर्मन को छू जाती |
इतनी शक्ति पाई इसने ,
जड़ तक को चेतन कर जाती ||

करुणा ममता दया दृष्टी से,
हर प्राणी को अपनाए,
क्रूर ह्रदय हो चाहे कितना,
उसको राह पे ले आए |

भीगी पलकें भीगा दामन,
सुलगती सांसे दहकती छाती |
विरह अग्नि होठों पे आह ,
कविता वहाँ जनम है पाती ||

कवि की रचना तथ्यपरक हो,
फूंके वो जन-जन में प्राण |
संयमित होकर कलम उठाये,
उद्देश्य हो उसका जग-कल्याण||




रचयिता ,

अम्बरीष श्रीवास्तव "वास्तुशिल्प अभियंता"
91/
९१, सिविल लाइंस सीतापुर , उत्तर प्रदेश , इंडिया ( भारतवर्ष )
मोबाइल : +९१९४१५०४७०२०

+919415047020
ईमेल: ambarishji@gmail.com