Friday, December 10, 2010

"कुछ फूल चढाने आये हम"












इस अंतर में प्रभु रहते हैं अब उन्हें रिझाने आये हम,
पट खोलो तुम मन मंदिर के कुछ फूल चढाने आये हम .

पथ में कंटक बन लोभ-मोह हमको घायल कर जाता है,
अपनेपन की लड़ियाँ लेकर अब राह सजाने आये हम.

पावनता बचपन की दिल में सत्संगति संग लिए अपने,
फैले अब जग में भक्ति भाव कुछ दीप जलाने आये हम.

तज राग द्वेष और अहंकार दिल में हैं सच्चे भाव भरे,
छोड़ा हमने है स्वार्थ मोह अब स्वर्ग बसाने आये हम.

है नर्क परायापन जग में बस स्वर्ग वहीं परमार्थ जहाँ,
प्राणों से प्यारे भारत में नव पौध लगाने आये हम.
--अम्बरीष श्रीवास्तव

"उस माँ को हमने क्या जाना "






उस माँ को हमने क्या जाना जो दुःख ही सारे सहती है.
हैं त्याग दिए निज जीवन सुख और प्यार बाँटती रहती है.
आयी अब याद हमें माँ की माँ के मन में है कब से हम-
दिल माँ का सच्चा मंदिर है ये सारी दुनिया कहती है..
--अम्बरीष श्रीवास्तव