Friday, December 10, 2010

"कुछ फूल चढाने आये हम"












इस अंतर में प्रभु रहते हैं अब उन्हें रिझाने आये हम,
पट खोलो तुम मन मंदिर के कुछ फूल चढाने आये हम .

पथ में कंटक बन लोभ-मोह हमको घायल कर जाता है,
अपनेपन की लड़ियाँ लेकर अब राह सजाने आये हम.

पावनता बचपन की दिल में सत्संगति संग लिए अपने,
फैले अब जग में भक्ति भाव कुछ दीप जलाने आये हम.

तज राग द्वेष और अहंकार दिल में हैं सच्चे भाव भरे,
छोड़ा हमने है स्वार्थ मोह अब स्वर्ग बसाने आये हम.

है नर्क परायापन जग में बस स्वर्ग वहीं परमार्थ जहाँ,
प्राणों से प्यारे भारत में नव पौध लगाने आये हम.
--अम्बरीष श्रीवास्तव

"उस माँ को हमने क्या जाना "






उस माँ को हमने क्या जाना जो दुःख ही सारे सहती है.
हैं त्याग दिए निज जीवन सुख और प्यार बाँटती रहती है.
आयी अब याद हमें माँ की माँ के मन में है कब से हम-
दिल माँ का सच्चा मंदिर है ये सारी दुनिया कहती है..
--अम्बरीष श्रीवास्तव

Thursday, October 7, 2010

लखनऊ ब्लोगर्स एसोशियेशन पर इस सप्ताह की श्रेष्ठ पोस्ट की उद्घोषणा



Please check this link.......
http://lucknowbloggersassociation.blogspot.com/search?updated-max=2010-10-04T20%3A19%3A00%2B05%3A30&max-results=5
सप्ताह की श्रेष्ठ पोस्ट की उद्घोषणा

कहा जाता है कि प्रतिष्ठा, प्रशंसा और प्रसिद्धि की चाहत सभी को होती है , किन्तु सही मायने में प्रशंसा तब सार्थक समझी जाती है, जब आप किसी को पहले से नहीं जानते हों अचानक किसी मोड़ पर वह मिल जाए और आप उसके सद्गुणों की प्रशंसा करने को बाध्य हो जाएँ । ऐसा ही हुआ कुछ हमारे साथ ।

विगत दिनों यह घोषणा की गयी थी कि प्रत्येक सोमवार को हम लखनऊ ब्लोगर एसोशिएसन पर प्रकाशित किसी एक पोस्ट को सप्ताह की श्रेष्ठ पोस्ट का अलंकरण देंगे । आज पहला दिन है और हम जिस पोस्ट को सप्ताह की पोस्ट का अलंकरण देने जा रहे हैं उसके पोस्ट लेखक को मैंने पहली बार पढ़ा और उस पहले पोस्ट ने मुझे आकर्षित होने पर मजबूर किया वह पोस्ट है -

दिल से कर लो मेल..


एक संग होती रहे पूजा और अजान।
सबके दिल में हैं प्रभू वे ही सबल सुजान..

निर्गुण ब्रह्म वही यहाँ वही खुदा अल्लाह.
वही जगत परमात्मा उनसे सभी प्रवाह..

झगड़े आखिर क्यों हुए क्यों होते ये खेल.
मंदिर-मस्जिद ना करो दिल से कर लो मेल..

पंथ धर्म मज़हब सभी लगें बड़े अनमोल.
इनसे ऊपर है वतन मन की आँखें खोल..

बाँट हमें और राज कर हमें नहीं मंजूर.
सच ये हमने पा लिया समझे मेरे हुजूर.

बहुतेरी साजिश हुई नहीं गलेगी दाल.
एक रहेगा देश ये नहीं चलेगी चाल॥

श्री अंबरीश श्रीवास्तव की यह कविता सांप्रदायिक सद्भाव को समर्पित है और मुझे इस कविता को सप्ताह की श्रेष्ठ कविता या फिर श्रेष्ठ पोस्ट की घोषणा करते हुए अपार ख़ुशी की अनुभूति हो रही है ।

30 जून 1965 में उत्तर प्रदेश के जिला सीतापुर के “सरैया-कायस्थान” गाँव में जन्मे कवि अम्बरीष श्रीवास्तव ने भारत के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान 'भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान' कानपुर से विशेषकर भूकंपरोधी डिजाईन व निर्माण के क्षेत्र में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। कवि जनपद सीतापुर के प्रख्यात वास्तुशिल्प अभियंता एवं मूल्यांकक होने के साथ राष्ट्रवादी विचारधारा के कवि हैं। कई प्रतिष्ठित स्थानीय व राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं व इन्टरनेट पर जैसे अनुभूति, हिंदयुग्म, साहित्य शिल्पी, साहित्य वैभव, स्वर्गविभा, हिन्दीमीडिया, विकिपीडिया, रेनेसा, ड्रीमस-इंडिया, शिक्षक प्रभा व मज़मून आदि पर अनेक रचनाएँ प्रकाशित हैं। ये देश-विदेश की अनेक प्रतिष्ठित तकनीकी व्यवसायिक संस्थानों जैसे "भारतीय भवन कांग्रेस" , "भारतीय सड़क कांग्रेस", "भारतीय तकनीकी शिक्षा समिति", "भारतीय पुल अभियंता संस्थान" व अमेरिकन सोसायटी ऑफ़ सिविल इंजीनियर्स, आर्कीटेक्चरल इंजीनियरिग इंस्टीटयूट, स्ट्रक्चरल इंजीनियरिग इंस्टीटयूट आदि व तथा साहित्य संस्थाओं जैसे "हिंदी सभा", हिंदी साहित्य परिषद्" (महामंत्री ) तथा "साहित्य उत्थान परिषद्" आदि के सदस्य हैं। प्राप्त सम्मान व अवार्ड:- राष्ट्रीय अवार्ड "इंदिरा गांधी प्रियदर्शिनी अवार्ड 2007", "अभियंत्रणश्री" सम्मान 2007 तथा "सरस्वती रत्न" सम्मान 2009 आदि

.....इस अवसर पर श्री अंबरीश श्रीवास्तव जी के लिए ऋग्वेद की दो पंक्तियां समर्पित है कि - ‘‘आयने ते परायणे दुर्वा रोहन्तु पुष्पिणी:। हृदाश्च पुण्डरीकाणि समुद्रस्य गृहा इमें ।।’’अर्थात आपके मार्ग प्रशस्त हों, उस पर पुष्प हों, नये कोमल दूब हों, आपके उद्यम, आपके प्रयास सफल हों, सुखदायी हों और आपके जीवन सरोवर में मन को प्रफुल्लित करने वाले कमल खिले।


अनंत आत्मिक शुभकामनाओं के साथ-
शुभेच्छु-
रवीन्द्र प्रभात
अध्यक्ष : लखनऊ ब्लोगर एसोशिएसन
प्रस्तुतकर्ता: रवीन्द्र प्रभात 22 पाठकों ने अपनी राय दी है, कृपया आप भी दें! इसे ईमेल करें इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें Facebook पर साझा करें Google Buzz पर शेयर करें
Labels: सप्ताह की श्रेष्ठ पोस्ट

Thursday, September 30, 2010

दिल से कर लो मेल..

एक संग होती रहे पूजा और अजान.
सबके दिल में हैं प्रभू वे ही सबल सुजान..

निर्गुण ब्रह्म वही यहाँ वही खुदा अल्लाह.
वही जगत परमात्मा उनसे सभी प्रवाह..

झगड़े आखिर क्यों हुए क्यों होते ये खेल.
मंदिर-मस्जिद ना करो दिल से कर लो मेल..

पंथ धर्म मज़हब सभी लगें बड़े अनमोल.
इनसे ऊपर है वतन मन की आँखें खोल..

बाँट हमें और राज कर हमें नहीं मंजूर.
सच ये हमने पा लिया समझे मेरे हुजूर..

बहुतेरी साजिश हुई नहीं गलेगी दाल.
एक रहेगा देश ये नहीं चलेगी चाल..
--अम्बरीष श्रीवास्तव

Sunday, April 4, 2010

ज्ञान स्रोत हिन्दी बने.....................



















चतुर्भुजी माँ ब्राह्मी, वीणा पुस्तक सार |
ज्ञान स्रोत हिन्दी बने, इसका हो व्यवहार ||

ज्ञानदायिनी शारदे, सब हों हिन्दी मीत |
हिन्दी के व्यवहार से, छाये सबमें प्रीति ||

दुर्गम है हिन्दी नहीं, जन जन की आवाज़ |
उर अंतर में ये बसी, अनुशासित अंदाज ||

यति गति लय भी गद्य में, रक्खें इसका ध्यान |
अपनी शैली में लिखें , होगा कार्य महान ||

बोधगम्य हिन्दी लिखें, भरें शब्द भंडार |
छोटे छोटे वाक्य हों , समुचित वर्ण प्रकार ||

सहज सौम्य अनुकूलतम, शब्दों का विन्यास |
मुखरित होयें भाव सब , कर लें यही प्रयास ||

देना होगा ध्यान अब, देखें चिन्ह विराम |
मात्राएँ सब ठीक हों, अवलोकें अभिराम ||

शब्दों की संयोजना , मन में उठते भाव |
हिंदी में अभिव्यंजना , छोड़े अमिट प्रभाव |

हिन्दी में सब काम हो , हिन्दी हो आधार |
मातु करो सब पर कृपा, अपनी ये मनुहार ||

--अम्बरीष श्रीवास्तव

Tuesday, March 23, 2010

जय-जय राम


          
    राम नाम जपते रहें, मूल मंत्र ये नाम|
    अंतर में जब राम हों, बन जाएँ सब काम||

          मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम,
          तेरे चरणों में हैं बसते जग के सारे धाम..............
          जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२

अयोध्या नगरी में तुम जन्मे , दशरथ पुत्र कहाये,
विश्वामित्र थे गुरु तुम्हारे, कौशल्या के जाये,
ऋषि मुनियों की रक्षा करके तुमने किया है नाम ..........२
तुलसी जैसे भक्त तुम्हारे, बांटें जग में ज्ञान................
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२
मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम..................

सुग्रीव-विभीषण मित्र तुम्हारे, केवट- शबरी साधक,
भ्राता लक्ष्मण संग तुम्हारे, राक्षस सारे बाधक,
बालि-रावण को संहारा, सौंपा अदभुद धाम...........२
जटायु सा भक्त आपका आया रण में काम .........
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२
मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम..................
शिव जी ठहरे तेरे साधक, हनुमत भक्त कहाते,
जिन पर कृपा तुम्हारी होती वो तेरे हो जाते,
सबको अपनी शरण में ले लो दे दो अपना धाम |........२
जग में हम सब चाहें तुझसे, भक्ति का वरदान .................
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२

मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम..................

मोक्ष-वोक्ष कुछ मैं ना माँगूं , कर्मयोग तुम देना,
जब भी जग में मैं गिर जाऊँ मुझको अपना लेना,
कृष्ण और साईं रूप तुम्हारे, करते जग कल्याण ..........२
कैसे करुँ वंदना तेरी , दे दो मुझको ज्ञान .....................
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२

मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम..................

जो भी चलता राह तुम्हारी, जग उसका हो जाता,
लव-कुश जैसे पुत्र वो पाए, भरत से मिलते भ्राता,
उसके दिल में तुम बस जाना जो ले-ले तेरा नाम .........२
भक्ति भाव से सेवक सौंपे तुझको अपना प्रणाम ..........
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२
मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम..................
तेरे चरणों में हैं बसते जग के सारे धाम..............
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२


          -- अम्बरीष श्रीवास्तव
        
Facebook | Ambarish Srivastava: जय-जय राम


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Saturday, March 20, 2010

"गौरैया बचाओ!!!! कोई तो आओ !!!!..........

  
  आज के परिवेश में एक प्रश्न सभी से .....
 
   इधर उधर 
   फुदकती 
   मन भाती 
   चारों ओर चहचहाती 
   चिरैया 
   आँगन में नृत्य करती
   गौरैया 
   लगता है 
   शायद अब 
   किताबों में ही दिखेगी 
   अमानवीय  क्रूर हाथों से 
   कैसे बचेगी  वो ?
 
   --अम्बरीष श्रीवास्तव

Friday, March 19, 2010

हिंदी कविता: आखिर कैसे रुकेगा ये...........

          अख़बारों की हेड लाइन
          फलां मंत्री की हजारों करोड़की संपत्ति पर
          पड़ा सी बी आई का छापा
          अमुक शिक्षिका की हत्या
          वो भी बलात्कार के बाद
          रेल के इंजन पर लटके
          कीड़ों- मकोड़ों की तरह यात्री
          रेल दुर्घटना में डिब्बों से रिसता हुआ खून
          आखिर कैसे रुकेगा ये .................

          सरकारी अस्पताल के गेट पर
          महिला का प्रसव
          व उसकी दर्दनाक मृत्यु
          पेंशन के लिए दर-दर भटकते बुजुर्ग
          अपात्रों को पेंशनचारों ओर फैली भ्रष्टाचार की आग
          हर तरफ मानवाधिकारों का हनन
          भ्रष्टाचारियों की बल्ले-बल्ले
          शरीफों का जीना दूभर
          आज हमें मिलकर सोंचना है
          आखिर कैसे रुकेगा ये...........
          आखिर अब कैसे रुकेगा ये...........

          --इं0  अम्बरीष श्रीवास्तव

हिंदी कविता: आखिर कैसे रुकेगा ये...........
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नारी महिमा

आदि शक्ति नारी सदा, मधुरिम स्वर सम साज|
ममता ही सौन्दर्य है, आभूषण है लाज ||

नर से नारी है नहीं, नारी से नर होय |
नारी की महिमा अगम, समझ न पावै कोय ||

नारी से ही जग हुआ, अनुपम उसका प्यार |
नारी के सानिध्य से, मीठी सुखद बयार ||

माता का वह रूप है , सिर पर उसका हाथ |
पत्नी के भी रूप में, सदा निभाती साथ ||

बिनु नारी होता नहीं, पूरा घर परिवार |
भाभी, भगिनी हैं, सहित उसके रूप हजार ||

नारी को जग पूजता, सब हैं उसके लाल |
देखे जो कुदृष्टि से , खींचो उसकी खाल ||

बेशकीमती बालिका, चाहे हो गर्भस्थ |
अब जैसे भी हो सके , उसको रखो स्वस्थ ||

छोडो रीति कुरीति सब, मिलकर करो प्रयास |
नारी को सम्मान दो , उस पर हो विश्वास ||

--अम्बरीष श्रीवास्तव
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"तुम्हीं से है जनम पाया"



तुम्हीं से है जनम पाया पिता माता हमारे हो
झुका ये शीश चरणों पर हमारे प्रिय सहारे हो
करें कैसे तुम्हारी वंदना हम अपनी वाणी से
कहाँ से लायें शब्दों को तुम्हीं मांझी किनारे हो

चढ़ा कर्जे पे कर्जा है तुम्हारे प्यार का हम पर
बदन ये बन गया चन्दन तेरे आशीष को पाकर
उऋण अब हों भला कैसे जनम कितने भी ले लेँ हम
करूँ गर प्राण न्यौछावर रहेगा कम सदा तुम पर

पचासों साल हैं बीते खुशी का आज रेला है
तुम्हारा लाल ये ठहरा तेरे आँचल में खेला है
बहुत आघात पहुंचाए हमें जालिम ज़माने नें
तेरे आशीष से आयी मधुर ये आज बेला है

--अम्बरीष श्रीवास्तव

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Sunday, March 14, 2010

सभी मित्रों को नवरात्रि पर्व की बधाई व शुभकामनायें !















या देवी सर्वभूतेषु माँ नवदुर्गारूपेण संस्थिता !
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: !!
















मातृ शक्ति सम नहि कोई, ना दूजा है संत |
माता के नौ रूप हैं, अनुपम, अजय अनंत ||


















शैलसुता की साधना, पूरित सब संकल्प |
दृढ़ता भरे विचार हों, करतीं कायाकल्प
||














ओजपूर्ण ब्रह्मचारिणी, तन मन करें निखार |
तेजस्वी सम ओज हो, देखे जग संसार ||














सारी भव बाधा
हरें, हम हों निर्भय वीर |
सौम्य विनम्र सदा रहें, चंद्रम्-घंटा तीर |

 













आदि स्वरूपा शक्ति हैं, कुष्मांडा विख्यात |
कमल पुष्प अमृत कलश, सब निधि देतीं तात |
















स्कन्द-मातु कात्यायिनी, महिमा अपरम्पार|
कालरात्रि सम ना कोई, माँ गौरी दें प्यार ||














नौवीं माँ सिद्दी दात्री, हर लेतीं सब क्लेश |
रिद्धि सिद्धि मिलती कृपा, रहें प्रसन्न गणेश ||















आत्मशक्ति बढ़ती रहे, माँ का मिले दुलार |
मातृ भक्ति ही चाहिए , नवरात्री उपहार ||













--इं० अम्बरीष श्रीवास्तव