हिंदी कविता
कवि की रचना तथ्यपरक हो फूंके वो जन जन में प्राण...
Sunday, July 24, 2011
पानी ही पानी दिखे
पानी ही पानी दिखे
,
मिले न कोई ठौर
,
चढ़ आयी है घाघरा
,
चले न कोई जोर.
चले न कोई जोर
,
सभी कुछ जल में खोया
,
बचे पेड़ ही ठांव
,
उन्हीं कांधों पर रोया.
अम्बरीष क्यों आज
,
नदी करती मनमानी
,
काटे हमने पेड़
,
तो आया चढ़कर पानी.
--अम्बरीष श्रीवास्तव
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