Sunday, July 24, 2011

पानी ही पानी दिखे















पानी ही पानी दिखे, मिले न कोई ठौर,
चढ़ आयी है घाघरा, चले न कोई जोर.
चले न कोई जोर, सभी कुछ जल में खोया,
बचे पेड़ ही ठांव, उन्हीं कांधों पर रोया.
अम्बरीष क्यों आज, नदी करती मनमानी ,
काटे हमने पेड़, तो आया चढ़कर पानी.
--अम्बरीष श्रीवास्तव