Tuesday, March 23, 2010

जय-जय राम


          
    राम नाम जपते रहें, मूल मंत्र ये नाम|
    अंतर में जब राम हों, बन जाएँ सब काम||

          मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम,
          तेरे चरणों में हैं बसते जग के सारे धाम..............
          जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२

अयोध्या नगरी में तुम जन्मे , दशरथ पुत्र कहाये,
विश्वामित्र थे गुरु तुम्हारे, कौशल्या के जाये,
ऋषि मुनियों की रक्षा करके तुमने किया है नाम ..........२
तुलसी जैसे भक्त तुम्हारे, बांटें जग में ज्ञान................
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२
मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम..................

सुग्रीव-विभीषण मित्र तुम्हारे, केवट- शबरी साधक,
भ्राता लक्ष्मण संग तुम्हारे, राक्षस सारे बाधक,
बालि-रावण को संहारा, सौंपा अदभुद धाम...........२
जटायु सा भक्त आपका आया रण में काम .........
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२
मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम..................
शिव जी ठहरे तेरे साधक, हनुमत भक्त कहाते,
जिन पर कृपा तुम्हारी होती वो तेरे हो जाते,
सबको अपनी शरण में ले लो दे दो अपना धाम |........२
जग में हम सब चाहें तुझसे, भक्ति का वरदान .................
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२

मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम..................

मोक्ष-वोक्ष कुछ मैं ना माँगूं , कर्मयोग तुम देना,
जब भी जग में मैं गिर जाऊँ मुझको अपना लेना,
कृष्ण और साईं रूप तुम्हारे, करते जग कल्याण ..........२
कैसे करुँ वंदना तेरी , दे दो मुझको ज्ञान .....................
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२

मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम..................

जो भी चलता राह तुम्हारी, जग उसका हो जाता,
लव-कुश जैसे पुत्र वो पाए, भरत से मिलते भ्राता,
उसके दिल में तुम बस जाना जो ले-ले तेरा नाम .........२
भक्ति भाव से सेवक सौंपे तुझको अपना प्रणाम ..........
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२
मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम..................
तेरे चरणों में हैं बसते जग के सारे धाम..............
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२


          -- अम्बरीष श्रीवास्तव
        
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Saturday, March 20, 2010

"गौरैया बचाओ!!!! कोई तो आओ !!!!..........

  
  आज के परिवेश में एक प्रश्न सभी से .....
 
   इधर उधर 
   फुदकती 
   मन भाती 
   चारों ओर चहचहाती 
   चिरैया 
   आँगन में नृत्य करती
   गौरैया 
   लगता है 
   शायद अब 
   किताबों में ही दिखेगी 
   अमानवीय  क्रूर हाथों से 
   कैसे बचेगी  वो ?
 
   --अम्बरीष श्रीवास्तव

Friday, March 19, 2010

हिंदी कविता: आखिर कैसे रुकेगा ये...........

          अख़बारों की हेड लाइन
          फलां मंत्री की हजारों करोड़की संपत्ति पर
          पड़ा सी बी आई का छापा
          अमुक शिक्षिका की हत्या
          वो भी बलात्कार के बाद
          रेल के इंजन पर लटके
          कीड़ों- मकोड़ों की तरह यात्री
          रेल दुर्घटना में डिब्बों से रिसता हुआ खून
          आखिर कैसे रुकेगा ये .................

          सरकारी अस्पताल के गेट पर
          महिला का प्रसव
          व उसकी दर्दनाक मृत्यु
          पेंशन के लिए दर-दर भटकते बुजुर्ग
          अपात्रों को पेंशनचारों ओर फैली भ्रष्टाचार की आग
          हर तरफ मानवाधिकारों का हनन
          भ्रष्टाचारियों की बल्ले-बल्ले
          शरीफों का जीना दूभर
          आज हमें मिलकर सोंचना है
          आखिर कैसे रुकेगा ये...........
          आखिर अब कैसे रुकेगा ये...........

          --इं0  अम्बरीष श्रीवास्तव

हिंदी कविता: आखिर कैसे रुकेगा ये...........
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नारी महिमा

आदि शक्ति नारी सदा, मधुरिम स्वर सम साज|
ममता ही सौन्दर्य है, आभूषण है लाज ||

नर से नारी है नहीं, नारी से नर होय |
नारी की महिमा अगम, समझ न पावै कोय ||

नारी से ही जग हुआ, अनुपम उसका प्यार |
नारी के सानिध्य से, मीठी सुखद बयार ||

माता का वह रूप है , सिर पर उसका हाथ |
पत्नी के भी रूप में, सदा निभाती साथ ||

बिनु नारी होता नहीं, पूरा घर परिवार |
भाभी, भगिनी हैं, सहित उसके रूप हजार ||

नारी को जग पूजता, सब हैं उसके लाल |
देखे जो कुदृष्टि से , खींचो उसकी खाल ||

बेशकीमती बालिका, चाहे हो गर्भस्थ |
अब जैसे भी हो सके , उसको रखो स्वस्थ ||

छोडो रीति कुरीति सब, मिलकर करो प्रयास |
नारी को सम्मान दो , उस पर हो विश्वास ||

--अम्बरीष श्रीवास्तव
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"तुम्हीं से है जनम पाया"



तुम्हीं से है जनम पाया पिता माता हमारे हो
झुका ये शीश चरणों पर हमारे प्रिय सहारे हो
करें कैसे तुम्हारी वंदना हम अपनी वाणी से
कहाँ से लायें शब्दों को तुम्हीं मांझी किनारे हो

चढ़ा कर्जे पे कर्जा है तुम्हारे प्यार का हम पर
बदन ये बन गया चन्दन तेरे आशीष को पाकर
उऋण अब हों भला कैसे जनम कितने भी ले लेँ हम
करूँ गर प्राण न्यौछावर रहेगा कम सदा तुम पर

पचासों साल हैं बीते खुशी का आज रेला है
तुम्हारा लाल ये ठहरा तेरे आँचल में खेला है
बहुत आघात पहुंचाए हमें जालिम ज़माने नें
तेरे आशीष से आयी मधुर ये आज बेला है

--अम्बरीष श्रीवास्तव

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Sunday, March 14, 2010

सभी मित्रों को नवरात्रि पर्व की बधाई व शुभकामनायें !















या देवी सर्वभूतेषु माँ नवदुर्गारूपेण संस्थिता !
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: !!
















मातृ शक्ति सम नहि कोई, ना दूजा है संत |
माता के नौ रूप हैं, अनुपम, अजय अनंत ||


















शैलसुता की साधना, पूरित सब संकल्प |
दृढ़ता भरे विचार हों, करतीं कायाकल्प
||














ओजपूर्ण ब्रह्मचारिणी, तन मन करें निखार |
तेजस्वी सम ओज हो, देखे जग संसार ||














सारी भव बाधा
हरें, हम हों निर्भय वीर |
सौम्य विनम्र सदा रहें, चंद्रम्-घंटा तीर |

 













आदि स्वरूपा शक्ति हैं, कुष्मांडा विख्यात |
कमल पुष्प अमृत कलश, सब निधि देतीं तात |
















स्कन्द-मातु कात्यायिनी, महिमा अपरम्पार|
कालरात्रि सम ना कोई, माँ गौरी दें प्यार ||














नौवीं माँ सिद्दी दात्री, हर लेतीं सब क्लेश |
रिद्धि सिद्धि मिलती कृपा, रहें प्रसन्न गणेश ||















आत्मशक्ति बढ़ती रहे, माँ का मिले दुलार |
मातृ भक्ति ही चाहिए , नवरात्री उपहार ||













--इं० अम्बरीष श्रीवास्तव