
सी भी हालत में,
एक हजार से ज्यादह रूपये नहीं दूंगा! यह सुनकर वह आर्कीटेक्ट वापस चले गए|
इधर सुलेमान भाई ने भी सस्ते में ही, एक दो मंजिला शानदार घर बनवा डाला|
इस बात को एक महीना भी नहीं बीता, तभी किसी व्यापारिक कार्यवश दिल्ली
प्रवास के दौरान, सुलेमान भाई को खबर मिली कि, उनके शहर में एक तेज भूकंप
आया है| हड़बड़ी में गिरते-पड़ते किसी तरह जब वे अपने घर पहुँचे, तो उन्होंने
पाया कि परिचित का घर तो सीना ताने उनके सामने खड़ा था पर, मलवे की शक्ल में
तब्दील उनके सपनों का घर, सारे परिवार को स्वयं में दफ़न किये हुए, उनकी
कंजूसी को लगातार मुँह चिढ़ा रहा था | यह देखकर वे विक्षिप्त से हो उठे और
अपना सिर जमीन पर पटकने लगे |
अकस्मात कन्धे पर किसी का सांत्वना
भरा हाथ पाकर, उन्होंने आँसुओं से भरा हुआ स्वयं का चेहरा ऊपर उठाया, तो
पाया कि, वही आर्कीटेक्ट, स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से, मलवे से सुरक्षित
निकाली हुई, उनकी तीन वर्षीय जीवित पोती को गोद में उठाये हुए, उन्हें
सकुशल सौंप रहे थे....... जिसे उन्होंने एकबारगी तो अपने कलेजे से लगा लिया
किन्तु अगले ही पल उसे गोद से उतारा और आसमान की तरफ हाथ उठाकर बोले ऐ पाक
परवरदिगार! ये क्या किया ! इससे तो अच्छा था मेरे फरीद को बचा लेते
....आखिर मेरा वंश तो चलता !