Thursday, September 13, 2012

ग़ज़ल


इन्साफ जो मिल जाय तो दावत की बात कर
मुंसिफ के सामने न रियायत की बात कर

तूने किया है जो भी हमें कुछ गिला नहीं
ऐ यार अब तो दिल से मुहब्बत की बात कर

गर खैर चाहता है तो बच्चों को भी पढ़ा
आलिम के सामने न जहालत की बात कर

अपने ही छोड़ देते तो गैरों से क्या गिला
सब हैं यहाँ ज़हीन सलामत की बात कर

'अम्बर' भी आज प्यार की धरती पे आ बसा
जुल्मो सितम को भूल के जन्नत की बात कर

--अम्बरीष श्रीवास्तव 

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