Sunday, October 7, 2012

ग़ज़ल




हर शख्स नारियों पे अभी मेहरबान है
पानी में कितना कौन है नारी को ज्ञान है.

नवजात बाँधे पीठ करे हाड़तोड़ श्रम,
तकदीर से गिला न ये गीता-कुरान है.    

बच्चे को जो कसे था सो अजगर से जा भिड़ी, 
हिम्मत को कर सलाम ये नारी महान है.

झाड़ू व चूल्हे में जुटे कपड़े धुले सभी,
सेवा भी सबकी साथ में क्या शक्तिमान है. 

बोझिल है आँख नींद से भी फिक्र पर सभी,
सोती है घंटे चार ही मुश्किल में जान है.

तारीफ कर चुके है बड़ी अब तो ध्यान दें,
सहयोग चाहती है मगर बेजुबान है.

अबला अगर शरीर से सबला है कर्म से,
'अम्बर' जो हमसफ़र है वही बेईमान है.
--इं० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

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