Thursday, January 29, 2009

"माँ"



















अपने रक्त से सिंचित करके माँ नें हमको जनम दिया 
गर्भावस्था से ही उसने संस्कारों का आधार दिया 
सर्वप्रथम जब आँख खुली तो मुख पे माँ ही स्वर आया 
दुनिया में किस बात का डर जब सिर पर हो माँ का साया

पहला स्वर सुनते ही उसने छाती से अमृत डाला
अपने वक्षस्थल में रखकर ममता से उसने पाला 
प्रथम गुरु है माँ ही अपनी उससे पहला ज्ञान मिला
माँ का रूप है सबसे प्यारा सबसे उसको मान मिला 

नारी के तो रूप अनेकों भगिनी रूप में वो भाती 
संगिनी रूप में साथ निभाकर मातृत्व से सम्पूर्णता पाती 
अपरम्पार है माँ की महिमा त्याग की मूरत वो कहलाती 
उसके कर्म से प्रेरित होकर मातृ-भूमि पूजी जाती 

माँ में ही नवदुर्गा बसती माता ही है कल्याणी 
माँ ही अपनी मुक्तिदायिनी माँ का नाम जपें सब प्राणी 
माँ के चरणों में स्वर्ग है बसता करते सब तेरा वंदन
तेरा कर्जा कभी न उतरे तुझको कोटिश अभिनन्दन |
 
--अम्बरीष श्रीवास्तव

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