Thursday, September 30, 2010

दिल से कर लो मेल..

एक संग होती रहे पूजा और अजान.
सबके दिल में हैं प्रभू वे ही सबल सुजान..

निर्गुण ब्रह्म वही यहाँ वही खुदा अल्लाह.
वही जगत परमात्मा उनसे सभी प्रवाह..

झगड़े आखिर क्यों हुए क्यों होते ये खेल.
मंदिर-मस्जिद ना करो दिल से कर लो मेल..

पंथ धर्म मज़हब सभी लगें बड़े अनमोल.
इनसे ऊपर है वतन मन की आँखें खोल..

बाँट हमें और राज कर हमें नहीं मंजूर.
सच ये हमने पा लिया समझे मेरे हुजूर..

बहुतेरी साजिश हुई नहीं गलेगी दाल.
एक रहेगा देश ये नहीं चलेगी चाल..
--अम्बरीष श्रीवास्तव

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