Friday, February 28, 2014

"मेरी बेटियों तुम सदा मुस्कुराना"


गीत

सतत कर्म करना मुकद्दर बनाना
मेरी बेटियों तुम सदा मुस्कुराना

चली पेट में वो थी धड़कन सुनाती
लुढ़ककर पलटकर वो हमको लुभाती
मशीनों से जाँचा जो थे जान पाये
बने उसके दुश्मन सभी खार खाये
मिटाने की खातिर छुरी मत उठाना
मेरी बेटियों तुम सदा मुस्कुराना

बढ़ी चाँद जैसी वो प्यारी सी बेटी
जमाने की खुशियाँ थीं हमने समेटी
खनकती हँसी थी चहकती सी बोली
सजाती थी आँगन बनाकर रँगोली
नहीं भूलता है वो छिपना-छिपाना
मेरी बेटियों तुम सदा मुस्कुराना

लिया कर्ज हमने भरी क़िस्त मोटी
किये हाथ पीले बची बस लँगोटी
लिपटकर वो रोई उठी जब थी डोली
जलानी थी किस्मत को उसकी ही होली
बहुत ही कठिन था वहाँ आना-जाना
मेरी बेटियों तुम सदा मुस्कुराना

कहते थे खुद को खुदा के जो बन्दे
हवस के पुजारी थे वहशी दरिन्दे
किया उसका सौदा व सोना कमाया
वहाँ से जो भागी तो जिन्दा जलाया
बचाया उसी ने उसे था बचाना
मेरी बेटियों तुम सदा मुस्कुराना

वो गुमसुम हुई थी सदा चुप सी रहती
भरा दर्द दिल में जो चुपचाप सहती
हालत जो सँवरी तो उठकर चली थी
पुनः था सवेरा वो चंगी-भली थी
सुनहरे से पथ पर हुई वह रवाना
मेरी बेटियों तुम सदा मुस्कुराना

जगी बुद्धि उसकी लिया एडमीशन
पढ़ी रात दिन वो दिया कम्पिटीशन
बहुत तेज ठहरी गज़ब की समीक्षक
बनी वो ही बेटी पुलिस की अधीक्षक
जमाने ने उसको था जाना व माना
मेरी बेटियों तुम सदा मुस्कुराना

अजी बेटियों से सदा मन डरा है
भले रूप लावण्य सोना खरा है
इसी पर तो ससुरा ज़माना मरा है
सो सावन के अंधे को लगता हरा है
सदा इस जमाने को ठोकर लगाना
मेरी बेटियों तुम सदा मुस्कुराना
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इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
91, आगा कॉलोनी सिविल लाइन्स सीतापुर उत्तर प्रदेश |
संपर्क : 09415047020,
05862-244440
email : ambarishji@gmail.com

1 comment:

  1. हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
    शेरवानी ओ सेहरा ढोते रहे इक लंबी उम्र तक,
    जब उतारा पैरहन न् जाने कितने कफ़न निकले,
    न् जाने कितने वाहियात खुदी में दमन निकले,
    सापों की बिलों के पास ही दरख्ते चन्दन निकले,
    हमारी उम्र भी कई कई प्रकास वर्ष है मियां,
    ये तो यूँही कुछ जनम आवागमन में निकले,
    अगस्त्य
    24/07/2014

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